कभी इस कदर बेज़ार तबीअत नहीं रही !
कभी ज़िन्दगी इस कदर बेमुरव्वत नहीं रही !!
रात भी कटती नहीं और दिन भी गुज़रता नहीं !
शायद वक़्त की रफ़्तार में वो शिद्दत नहीं रही !!
वो शख़्स है जो आईने में आजकल खामोश है !
शायद ख़ुद से बात करने की अब आदत नहीं रही !!
अब कुछ वक़्त मिला है तो परेशान हो गए !
आज तक इतनी कभी फुरसत नहीं रही !!
इक अजनबी से हो गए वो चन्द ऱोज़ में !
मिलते तो हैं पर वो हरारत नहीं नहीं रही !!
चेहरे से जान लेते हैं वो मेरे दिल का हाल !
अब झूठ बोलने में वो महारत नहीं रही !!
अब दिल का हाल आपको क्यों करके सुनाएँ !
जो आपको अब हमसे मोहब्बत नहीं रही !!
है किस तरह का ये मंज़र ये कैसा शहर है !
कहने को लोग तो हैं रफ़ाक़त नहीं रही !!
हरारत : warmth
रफ़ाक़त : friendship, companionship
Waaaahhhh
पढ़ के सच में तबियत सुधर गई
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[…] तबीअत !! […]
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