मुझसे जुदा नहीं है वो, कुछ इस तरह समझा गया,
वो पहलू में आया इस तरह, के रूह में समा गया !
मुझसे जुदा नहीं है वो, कुछ इस तरह समझा गया,
वो पहलू में आया इस तरह, के रूह में समा गया !
कट चुकी कितनी, है बाक़ी रह गयी कितनी
गुज़रेगी ज़िन्दगी शायद इस हिसाब में !
मैंने तो शिकायत ना की शबे-हिज्र की
क्यों चुभ रहे हैं कांटे बिस्तरे-संजाब में !
जवाब मेरे पास हैं गुम हो गये सवाल
सवाल ढूंढ़ता हूँ मैं अब हर जवाब में !
मेरा अदम बिस्मिल हुआ ज़िन्दगी तलाशते
हर मोड़ पर मिली ये नक़ाब दर नक़ाब में !
खुद जल के देखता हूँ रक्से–शरर मैं
लगता है मेरी तिश्नगी है इल्तिहाब में !
मुझे पाना है अपने लक्ष्य को,
तय करना है मीलों लम्बा रास्ता !
गुज़रना है समाज की उपेक्षा से ,
गुज़रना है अपनों के अविश्वास से !
इक अनकही सी तृष्णा है मन में,
मैं क्यों तय कर रहा हूँ ये रास्ता ?
क्यों भिड़ गया हूँ इस समाज से ?
क्यों भिड़ गया हूँ मेरे अपनों से ?
क्या पाना चाहता हूँ मैं आख़िर ?
क्या मैं चल पाऊंगा बिलकुल अकेला ?
क्या मेरा लक्ष्य बड़ा है मेरे समाज से?
क्या मेरा लक्ष्य बड़ा है मेरे अपनों से ?
क्यों लड़ रहा हूँ मैं सबसे?
मैं क्यों अलग़ खड़ा हूँ सबसे?
ये मेरा ही तो समाज है,
ये मेरे ही तो अपने हैं !
मगर क्या मैं जी सकता हूँ
अपनी आकाँक्षा का गला घोट कर ?
क्या मैं जी सकता हूँ
भीड़ का बस एक हिस्सा बन कर ?
क्या मैं जी सकता हूँ
भीड़ में बस एक चेहरा बन कर ?
नहीं, मुझे उठना है इस भीड़ से ऊपर ,
बनानी है खुद की अलग पहचान !
ये मेरे अपने अस्तित्व की लड़ाई है ,
नहीं बनना मुझे हिस्सा इस भीड़ का !
तय करना होगा ये मीलों लम्बा रास्ता…
गुज़र कर जाना होगा समाज की उपेक्षा से …
गुज़र कर जाना होगा अपनों के अविश्वास से…
मुझे पाना ही होगा मेरा लक्ष्य…
लक्ष्य – मेरे अपने अस्तित्व का !
लक्ष्य – मेरी अपनी अलग पहचान का !!
मुड़ मुड़ शामां पैंदीआं ने , मुड़ मुड़ ओ तन्हाई ऐ ,
मैं आपे गल्लाँ करदा हाँ, मैनू कैंदे लोग शदाई ऐ !
मुड़ मुड़ यादाँ आँदियां ने, कदी चेता ओदा भुलदा नईं,
ओ नाल नई पर दूर वी नई, मेरा यार बड़ा हरजाई ऐ !!
हैं मजबूत इरादे बिना तामील के बेमानी,
कागज़ की कश्ती पर समंदर पार नहीं होते !
बिना कोशिश बस ख्वाब में मिलती है मंज़िल ,
बिना गिरे तो शहसवार भी तैयार नहीं होते !
लफ़्ज़ों में लिपटा दर्द ना हो जाए बरहना,
तुम सामने हो तो कहीं कुछ बात ना निकले !
तन्हाईओं में अक्सर करते थे इस से बातें ,
डरते है ये आईना कहीं गुस्ताख़ ना निकले !!
आदत मेरी ख़राब के सच बोलता हूँ मैं !
कहते हैं पागल मुझे तेरे शहर के लोग !
ना ये ख़याल रख कि मुझसे जुदा है तू ,
मुझपे उठा सवाल तो तेरी भी बात होगी !
ख़ुलूस से नफ़रत निभाना उनसे कोई सीख ले,
ख़ंजर भी मारते हैं , शिद्दत से गले लग कर !!