कारवाँ !!

मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने कहा था :

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर

लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

 
मजरूह सुल्तानपुरी जी से माफ़ी माँगते हुए बड़े अदब के साथ कहना चाहता हूँ :

कारवाँ ले कर चला था जानिब-ए-मंज़िल मग़र

लोग छूटते गए और आख़िर मैं अकेला रह गया !

जेहाद !!

Feel so pained and ANGRY..

Merciless killing of our soldiers by a lunatic in name of Jehad and Jannat. Cant help but say this to them and their supporters: ROT ETERNALLY IN HELL..

जेहाद के नाम पर ये खून बहाने वाले

कैसी है इनकी वहशत, ये कैसा जूनून है?

 

जन्नत के नाम पर मासूमों के ये क़ातिल ,

सर पे जिनके जाने कितनों का खून है !

 

फुर्सत मिले तो जा कर के ज़रा इनसे पूछना ,

दोज़ख़ में उनकी रूह को कितना सुकून है !!