ऐसा नहीं कि दर्द को सहने की ताब है
महसूस कुछ होता नहीं, एहसास ग़ुम !
अब क्या कहूँ मैं उनसे अपनी मज़बूरी
वो सामने जब भी रहे , आवाज़ गुम !
जज़्बात को लफ़्ज़ों की देने लगा शक्ल
जब हाथ में आई क़लम, अल्फ़ाज़ ग़ुम !
तू बता इस हाल में कैसे कहूँ ग़ज़ल
मय भी है, महफ़िल भी है, साज़ ग़ुम !