
हर सुब्हो शाम शोलों से गुज़रना था हमें !
हर मोड़ पर गिर गिर के संभलना था हमें !!
हम कहाँ जिस्म थे जो तेरे रूबरू होते !
हम रूह थे तेरे जिस्म में ढलना था हमें !!
क्यों हो गए मस्तूर हम अब क्या कहें तुमसे !
हम शम्स थे हर सुबह निकलना था हमें !!
कितने ही हिर्स आये पर कायम रहा ज़मीर !
तेरे गेसुओं में ही आकर के उलझना था हमें !!
कहने को हम कोहसार थे मेरे मेहबूब लेकिन !
आ कर तेरे पहलू में ही बिखरना था हमें !!
तेरी नज़रों में उतर कर जाना था दिल तलक !
हर हालात में तय ये सफर करना था हमें !!
हम थे शमा कायम रहे कुछ कर ना पाई आतिश !
आ कर के तेरे आग़ोश में ही पिघलना था हमें !!
हमको भी देखना था इज़्तिराब का सबब !
सहर तेरी गली से एक बार गुज़रना थे हमें !!
मस्तूर : Hidden
शम्स : Sun
हिर्स : Temptation
गेसुओं : Hair
कोहसार: Mountain
आतिश : Fire
इज़्तिराब: Unrest
मुझे आपका राइटिंग स्टाइल बहुत अच्छा लगा।
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शुक्रिया !! 🙂
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बहुत खूब 👌
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शुक्रिया 🙂
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“हम रूह थे तेरे जिस्म में ढलना था हमें”
बहुत खूब मेरे दोस्त
बहुत उम्दा लिखते हो।
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आपका बहुत शुक्रिया 🙂
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बहुत खूब दिल से।
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Oh my god….. ye aapne likha hai ? YE BAHUT HI ACCHA HAI….! Minf blowing. Bahut dino baad kuch accha padha ! Keep it up. ❤
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