दिले हज़ीं में जिनका तस्सवुर है अभी तलक,
भूले से ही सही वो हमें याद तो करते होंगे !
पलकों में जो मस्तूर हैं अश्क़ दिले ज़ार के,
बन के गरदाब उनकी आँखों से गुज़रते होंगे !
चर्ख पर चमकते इस माहताब के तले,
हम सिसकते हैं तो वो भी तो जलते होंगे !
आती तो होगी याद उनको अहदे रफ्तां की,
बन संवर के जब वो घर से निकलते होंगे !
तर्के उल्फ़त से वो लगते हैं मुतमइन लेकिन,
ज़ुल्मते शब वो यकीनन पहलू तो बदलते होंगे