क्या कहें क्या न कहें, बस कश्मकश में रह गए,
हम अल्फ़ाज़ ढूंढते रहे वो बात अपनी कह गए !
कैसे करें तामीर अब ख्वाबों के महल हम,
ऐसी हुई बरसात के अरमान सारे बह गए !
गुलशन में तो गवाह है हर शज़र तूफ़ान का,
शाख़ों पे अब सूखे हुए बस चन्द पत्ते रह गए !
कब तलक रहता यों रोशन ये दिया उम्मीद का,
इमारतें खंडहर बनीं, खंडहर भी आखिर ढह गए !
आखिर में वो हो कर रहा, जिस बात का अंदाज़ था,
वो अपनी राह चल दिए, हम अपनी राह चल दिए !