कश्मकश !!

क्या कहें क्या न कहें, बस कश्मकश में रह गए,

हम अल्फ़ाज़ ढूंढते रहे वो बात अपनी कह गए !

 

कैसे करें तामीर अब ख्वाबों के महल हम,

ऐसी हुई बरसात के अरमान सारे बह गए !

 

गुलशन में तो गवाह है हर शज़र तूफ़ान का,

शाख़ों पे अब सूखे हुए बस चन्द पत्ते रह गए !

 

कब तलक रहता यों रोशन ये दिया उम्मीद का,

इमारतें खंडहर बनीं, खंडहर भी आखिर ढह गए !

 

आखिर में वो हो कर रहा, जिस बात का अंदाज़ था,

वो अपनी राह चल दिए, हम अपनी राह चल दिए !

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