हिसाब !!

कट चुकी कितनी, है बाक़ी रह गयी कितनी

गुज़रेगी ज़िन्दगी शायद इस हिसाब में !

 

मैंने तो शिकायत ना की शबे-हिज्र की

क्यों चुभ रहे हैं कांटे बिस्तरे-संजाब में !

 

जवाब मेरे पास हैं गुम हो गये सवाल

सवाल ढूंढ़ता हूँ मैं अब हर जवाब में !

 

मेरा अदम बिस्मिल हुआ ज़िन्दगी तलाशते

हर मोड़ पर मिली ये नक़ाब दर नक़ाब में !

 

खुद जल के देखता हूँ रक्सेशरर मैं

लगता है मेरी तिश्नगी है इल्तिहाब में !

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