लक्ष्य !!

मुझे पाना है अपने लक्ष्य को,

तय करना है मीलों लम्बा रास्ता !

गुज़रना है समाज की उपेक्षा से ,

गुज़रना है अपनों के अविश्वास से !

 

इक अनकही सी तृष्णा है मन में,

मैं क्यों तय कर रहा हूँ ये रास्ता ?

क्यों भिड़ गया हूँ इस समाज से ?

क्यों भिड़ गया हूँ मेरे अपनों से ?

 

क्या पाना चाहता हूँ मैं आख़िर ?

क्या मैं चल पाऊंगा बिलकुल अकेला ?

क्या मेरा लक्ष्य बड़ा है मेरे समाज से?

क्या मेरा लक्ष्य बड़ा है मेरे अपनों से ?

 

क्यों लड़ रहा हूँ मैं सबसे?

मैं क्यों अलग़ खड़ा हूँ सबसे?

ये मेरा ही तो समाज है,

ये मेरे ही तो अपने हैं !

 

मगर क्या मैं जी सकता हूँ

अपनी आकाँक्षा का गला घोट कर ?

क्या मैं जी सकता हूँ

भीड़ का बस एक हिस्सा बन कर ?

क्या मैं जी सकता हूँ

भीड़ में बस एक चेहरा बन कर ?

 

नहीं, मुझे उठना है इस भीड़ से ऊपर ,

बनानी है खुद की अलग पहचान !

ये मेरे अपने अस्तित्व की लड़ाई है ,

नहीं बनना मुझे हिस्सा इस भीड़ का !

तय करना होगा ये मीलों लम्बा रास्ता… 

गुज़र कर जाना होगा समाज की उपेक्षा से …

गुज़र कर जाना होगा अपनों के अविश्वास से…

मुझे पाना ही होगा मेरा लक्ष्य…

लक्ष्यमेरे अपने अस्तित्व का !

लक्ष्य – मेरी अपनी अलग पहचान का !!

 

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