ख़ंजर !!

वो परेशां हो गए संग बरसाते,

मैंने न कभी उनको पलट कर देखा !

ये मेरी जाँ जिस्म से तब निकली,

मैंने जब तेरे भी हाथ में ख़ंजर देखा !!

इल्तजा !!

अंधेरों में रहने की आदत सी हो चली है

ये रात ना गुज़रे कभी, ना आफ़ताब निकले

हो जाएगा नुमायाँ ये मेरा जिस्म बरहना

है इल्तजा तुझसे ख़ुदा ये बर्फ ना पिघले !! Continue reading

तूफ़ान !!

तूफ़ान कुछ ऐसा चला, गुलशन को ख़ाक कर गया ,

हम रह गए बस बिखरे हुए तिनके सँभालते !

लफ़्ज़ों के नश्तर छोड़ कर वो अपनी राह चल दिया

हम रह गए बस जिस्म से काँटे निकलते !!

ग़ुम !!

ऐसा नहीं कि दर्द को सहने की ताब है

महसूस कुछ होता नहीं, एहसास ग़ुम !

 

अब क्या कहूँ मैं उनसे अपनी मज़बूरी

वो सामने जब भी रहे , आवाज़ गुम !

 

जज़्बात को लफ़्ज़ों की देने लगा शक्ल

जब हाथ में आई क़लम, अल्फ़ाज़ ग़ुम !

 

तू बता इस हाल में कैसे कहूँ ग़ज़ल

मय भी है, महफ़िल भी है, साज़ ग़ुम !

आदत !!

तू मेरे पास होता, ये मेरी हालत नहीं होती,

यों पीकर बहकने की फिर ज़रुरत नहीं होती !

 

फ़िर जाम उठाने का वक़्त कहाँ मिलता ,

जब गेसुए पेचां से ही फुर्सत नहीं मिलती !

 

कटती है सुब्होशाम मयखाने में आज कल ,

जो तू होता यक़ीनन ये मेरी आदत नहीं होती !