जिस से भी नज़र मिली, क़तरा के चल दिया,
बेवज़ह मुस्कुराने की ज़रुरत ही कहाँ है !
बेसुध है मेरे शहर का निज़ाम जब सारा,
फ़िर होश में आने की ज़रुरत ही कहाँ है !
जिस से भी नज़र मिली, क़तरा के चल दिया,
बेवज़ह मुस्कुराने की ज़रुरत ही कहाँ है !
बेसुध है मेरे शहर का निज़ाम जब सारा,
फ़िर होश में आने की ज़रुरत ही कहाँ है !
awesome
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Hosh mein aana kaun chahta hai?
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