एक दिन महबूब से कुछ हमने यों पूछा ,
बतलाओ आख़िर कैसा किस्सा है मुहब्बत !
वो हंस पड़े और बोले ए सनम हमपे ,
मरते भी हो और पूछते हो क्या है मुहब्बत !
बाग़ में इक फूल का खिलना है मोहब्बत ,
सुबह को चिड़िओं का चहकना है मोहब्बत ,
शमा पे परवाने का यों मरना है मोहब्बत ,
यों इस तरह तेरा मेरा मिलना है मोहब्बत ,
नादान हो कितने जो तुम ये जानते नहीं ,
खुद को लुटा देने का जज़्बा है मोहब्बत !
माहताब का शब को निकलना है मोहब्बत ,
मौसम का यों रंग बदलना है मोहब्बत ,
बेकरार दिल का मचलना है मोहब्बत ,
हाथों में ले के हाथ चलना है मोहब्बत ,
और तो अब क्या कहें बस जान लो इतना ,
बस यही इक लफ्ज़ सच्चा है मोहब्बत !
Unhe bhool jaane ki koshish hai Muhhabat
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