बर्फ !!

अंधेरों में रहने की आदत सी हो चली है
ये रात ना गुज़रे कभी, ना आफ़ताब निकले
हो जाएगा नुमायाँ ये मेरा जिस्म बरहना
है इल्तजा तुझसे ख़ुदा ये बर्फ ना पिघले !!

किरदार!!

दीवारों पे तेरा नाम लिख लिख के मिटाया मैंने,

क्या कहूँ कितनी मुश्किल से तुझको भुलाया मैंने !

 

बरसों का ताल्लुक तोड़ कर तुम यूँही चल दिए ,

पलट कर भी नहीं देखा कितना बुलाया मैंने !

 

तुमको पास मेरे लौट कर तो आना है इक दिन ,

हर शाम इसी तरह इस दिल को समझाया मैंने !

 

छुपा के दर्द सबसे रखा सामने हँसता हुआ चेहरा ,

बड़ी नफ़ासत से मेरे किरदार को निभाया मैंने !!

इश्क़ !!

गिरते रहे रहगुज़र में खा खा के ठोकरें….

अब ज़रा दो कदम तो संभल के देखें ….

कर लिया तुमसे बेवफ़ा इश्क़ बहुत हमने ….

अब इश्क़ ज़रा ख़ुद से तो कर के देखें …..

हौसला !!!

वो संग बरसाते रहे हो कर पसे पर्दा,

पास उनके और कोई रास्ता शायद न था !

पीठ में पैवस्त खंजर ये गवाही दे रहे ,

सामने आने का उनमें हौसला शायद न था !

संग (पत्थर) , पसे पर्दा (परदे के पीछे से)

होश !!

जिस से भी नज़र मिली, क़तरा के चल दिया,

बेवज़ह मुस्कुराने की ज़रुरत ही कहाँ है !

बेसुध है मेरे शहर का निज़ाम जब सारा,

फ़िर होश में आने की ज़रुरत ही कहाँ है !

मुहब्बत !

एक दिन महबूब से कुछ हमने यों पूछा ,

बतलाओ आख़िर कैसा किस्सा है मुहब्बत !

वो हंस पड़े और बोले ए सनम हमपे ,

मरते भी हो और पूछते हो क्या है मुहब्बत !

बाग़ में इक फूल का खिलना है मोहब्बत ,

सुबह को चिड़िओं का चहकना है मोहब्बत ,

शमा पे परवाने का यों मरना है मोहब्बत ,

यों इस तरह तेरा मेरा मिलना है मोहब्बत ,

नादान हो कितने जो तुम ये जानते नहीं ,

खुद को लुटा देने का जज़्बा है मोहब्बत !

माहताब का शब को निकलना है मोहब्बत ,

मौसम का यों रंग बदलना है मोहब्बत ,

बेकरार दिल का मचलना है मोहब्बत ,

हाथों में ले के हाथ चलना है मोहब्बत ,

और तो अब क्या कहें बस जान लो इतना ,

बस यही इक लफ्ज़ सच्चा है मोहब्बत !

आदत !!

तू मेरे पास होता, ये मेरी हालत नहीं होती,

यों पीकर बहकने की फिर ज़रुरत नहीं होती !

फ़िर जाम उठाने का वक़्त कहाँ मिलता ,

जब गेसुए पेचां से ही फुर्सत नहीं मिलती !

कटती है सुब्होशाम मयखाने में आज कल ,

जो तू होता यक़ीनन ये मेरी आदत नहीं होती !